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Wednesday, 30 November 2016

MOHABBAT KE KISSE : तुमसे आखिरी मुलाक़ात के यादगार पल

sad love couple


2 दिन से तुम आँखों के सामने हो... याद है तुम्हे जब आखिरी बार मिली थी तुम मुझे उस रेलवे प्लेटफार्म पे और मै जा रही थी तुमसे बहुत दूर.. मै जानती थी कि शायद हमेशा के लिए जा रही हूँ, मगर तुम्हे झूठी तसल्ली दे रही थी कि जल्द आउंगी तुम्हे मिलने और तुम्हारी आँखों में उदासी तैर रही थी और तभी ट्रेन की अनाउंसमेंट हुई और कबसे थामे तुम्हारे जज्बात उफन पड़े, तुम रो रही थी, मेरा हाथ पकड़ रही थी और दोहरा रही थी बस इतना कि तुम्हे भी मेरे साथ जाना है और मै??


मै शून्य थी, बस मुस्कुरा रही थी और बोल रही थी तुम्हे रोना बन्द करो, अच्छा नही लगता सबके सामने मगर जानती हो मै भी रोके थी एक समुन्दर सा अपने अंदर मुस्कुराहट के पर्दो के पीछे....

और तुम सोच रही थी खुश हूँ मै, हंस रही हूँ मगर तुमने आँखे नही पढ़ी थी मेरी, खाली आँखे....

मै चली गयी थी हाथ छुड़ा के तुमसे ताकि सम्भल सकू, रोना नही था मुझे, लड़ना था....

जानती हो ये सब आज यहाँ नही लिखती मगर फेसबुक पूछ रहा है wats on ur mind? और 2 दिन से दिमाग में तुम्हारा वो चेहरा ही है, आँसुओ से भरा हुआ, ज़िद्द करता हुआ..

जानती हो तुम बहुत भोली हो...

बहुत मासूम सी हो, और बहुत प्यार करती हो शायद मुझसे मगर सुनो ना, मै नही मिल सकती तुमसे कभी....

तुम खुश रहना और हाँ मुस्कुराती रहना...

‪#‎किसी_का_दर्द_मेरे_शब्दों_में_या_शायद‬..

लेखिका: Madhu Mishra

Tuesday, 22 November 2016

तुमने शब्द पढ़े है ! लेकिन महसूस किया है कभी ?

शब्दों को पढ़ा है तुमने! बोला है! 
 
महसूस किया है क्या कभी?
 
किसी शब्द की गर्दन पर उंगली रख कर सहलाया है कभी?
 
किसी शब्द के सीने पर कान लगाकर धडकनें सुनी है उसकी? 

तुम कहोगे एक शब्द की इतनी हस्ती ही नहीं! शब्द ही तो है!
 
कितने शब्दों पर तुमने ठहाके लगाए हैं! कुछ पर रोये भी होगे शावर में खड़े होकर ! पर कभी किसी पन्ने पर लिखे ‘आं+सू’ को छूने से उंगलियों में नमक लगा है?
 
‘बा+रि+श’ पढ़कर सर पोछने का मन करता है? पैरों में कीचड़ महसूस होता है?
 
‘ब+च+प+न’ को अपने सीने पर रख कर देखो! कोई नंगा सा बच्चा घंटो चीटियों से खेलता हुआ दिख रहा है?
 
क्या कभी ‘त+न्हा+ई’ को पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे तुम्हारा कोई बेहद ख़ास तुम्हारे सीने में सरिया घुसाकर हंस रहा है तुम्हे देखकर और वो जगह आज तक न भरी हो?” 
 

‘श+म+शा+न’ पढ़कर कान के पीछे से ठंडी हवा गुज़रती है? वो बचपन का सपना दिखता है जिस पर कोई तुम्हारे सीने पर बैठ गया था और तुम उठ नहीं पा रहे थे?
 
‘भू+त’ पढ़ते हो तो अपने अगल बगल देखते हो तुम? कि इस रात में कोई पीछे से तुम्हारी स्क्रीन पर तो नहीं देख रहा? 
*पीछे मत देखना मैंने कहा!*
 
‘या+द’ सुनकर क्या तुम किसी भूले हुए शख्स की चेहरे की खाल को अपने नाखूनों से कुरेदते हो परत दर परत? उसे दर्द हो रहा है छोड़ दो उसे!
 
‘क्या कभी ‘वि+ध+वा’ पढने पर तुमने उसके साथ बैठ कर अपनी चूड़ियाँ तोड़ी? 
 
‘बाँ+झ’ पढ़कर उसके रोने के ठन्डे सुरों से सुर मिलाएं हैं कभी?
 

‘प्या+र’ सुनते हो तो कैसा महसूस होता है? मुझे लगता है तुम्हे घिन आती है! उबकाई सी !

अपना नाम सुनते हो तो कैसा लगता है? कोरापन? ऐसा लगता है जैसे कोई खाली डब्बा रोड पर किसी कबाड़ी के इंतज़ार में है?
 
तुमने याद किये है बहुत से शब्द! कुछ शब्द है जो तुम भूल गए! कुछ शब्द जो तुम भूलना चाहते हो पर भूल नहीं पा रहे! जो ‘वो’ कहती थी तुमसे तुम्हारे कंधे पर सर रख कर! तुम्हारे कानों में फुसफुसाती थी!

कितने कमज़ोर हो तुम एक उस एक अदने से 'शब्द' से हर रात हारते हो!
“तुमने शब्द पढ़े है! महसूस किया है कभी?”

REAL LOVE STORY IN HINDI- मुस्कराने की वजह तुम हो

hindi love story



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वो बार बार आपने केबिन से ऑफिस की एन्ट्रेंस की ओर देख रहा था ,, तलाश रहा था किसी को या फिर शायद इन्तजार था उसे किसी का ...
प्रताप नाम था उसका ,, मैनेजर के पद पर कार्यरत था वो उस कम्पनी में ,,
और उसी कम्पनी में कार्यरत थी वो ,,,,
संगीता ,,,
सांवली किन्तु सुन्दर नैन नख्श वाली एक लड़की !
रंग सांवला होने के बावजूद भी बला सी खूबसूरत थी वो ,, ऐसा प्रतीत होता था मानो किसी निपुण और परांगत मूर्तिकार ने खुद अपने हाथों से किसी सांवले संगमरमर को तराश कर सौन्दर्य से भी सुन्दर इस जीवित मूर्ति का निर्माण किया हो ।
वो सिर झुकाकर ऑफिस में आती ,,, अपनी कानों में मिश्री घोलती आवाज में सबका अभिवादन कर अपने काम में लग जाती ,, और शाम को छुट्टी के समय सबका अभिवादन करते हुए सिर झुकाए ही निकल जाती ।
किसी ने कभी उसे किसी से फालतू बातचीत करते नहीं देखा और ना ही कभी उसके पास बहुत अधिक किसी का फोन आता ,, ना जाने क्यों वो हमेशा अपने आप में ही खोई सी रहती ।

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प्रताप पहले ही दिन से मन ही मन उसे चाहने लगा था ,, लेकिन उसकी सादगी और शालीनता को देखते हुए कभी उससे कुछ कह ना सका ,, उसके मन में ये भय था कि कहीं वो मना ना कर दे ,, या कहीं वो प्रताप को गलत ना समझ ले।
इन्हीं सब बातों में आज 7 माहीने गुजर गए थे ,, प्रताप को दो दिन पहले ही पता चला था कि आज उसका जन्मदिन है और प्रताप ने फैसला कर लिया था कि कुछ भी हो लेकिन आज वो अपने हृदय में भरी अपनी भावनाओं को उसके सुकोमल हाथों में रख देगा ,, उसके बाद वो चाहे तो उन्हें फेक दे और ना चाहे तो अपना ले ,, बस ।


लेकिन आज वो काफी देर से आई ,, इतनी ही देर में प्रताप ने ना जाने कितनी बार उठ उठकर देखा , याद किया उसे ..
प्रताप का मन आज काम में नहीं लग रहा था ,, वो कभी घड़ी की ओर देखता ,, कभी उसकी ओर देखता ,, उसके बाद चेक करता अपने बैग में रखे उसे अधखिले गुलाब को ,, जो वो लाया था अपनी उस संगीत से भी सुंदर संगीता के लिए ।
वो गुलाब को बार बार छूता और मन ही मन यह सोचकर चुपचाप बैठ जाता कि शाम को बाहर निकलते ही उससे काफी के लिए पूछेगा और फिर वही पर ये फूल देकर उससे अपने दिल का हाल कहेगा ।

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एक ओर आज प्रताप का हाल खराब था ,, तो दूसरी ओर संगीता भी आज कुछ परेशान सी लग रही थी ,, वो बार बार अपनी पर्स से अपना फोन निकालकर देखती ,, उसपर लगातार आ रही काल को डिस्कनेक्ट कर के फोन को वापस पर्स में रख लेती !
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उसका बार बार ऐसा करना प्रताप को अजीब सा लग रहा था ,, वो बहुत देर से संगीता को ऐसा करते देख रहा था ,, वो बार बार फोन डिसकनेक्ट करती और उधर से दोबारा फोन आ जाता ।
अब ,, 4 बजने को आए थे ,, लेकिन अब भी वो फोन वाली प्रक्रिया जारी थी ,, बीच बीच में संगीता फोन पर शायद कुछ पढ़ने लगती ,, फिर हड़बड़ी में कुछ टाइप करने लगती ,, 5 बजे छुट्टी का टाइम हो चला है और उसे संगीता की ये बदहवासी परेशान कर रही थी ।
उसने बेल बजाकर चपरासी को बुलाया और उसे संगीता को भेजने का आदेश दिया ।
चपरासी ने जैसे ही संगीता को बताया कि मैनेजर साहब ने उसे बुलाया है वो रोआसी सी हो आई ,, उसे लगा कि ना जाने आज क्या हो गया ,, क्या आज उसने कोई गलती कर दी ??
पहले तो उसे कभी इस तरह नही बुलाया गया ..
कहीं उसे बार बार फोन का इस्तेमाल करने के लिए फटकार तो नहीं लगाई जाएगी ,, कभी उसकी काम को लेकर डाट नहीं पड़ी ,, कहीं आज उसकी डाट तो नहीं पड़ जाएगी ??
वो प्रताप के केबिन में आते ही अपने आप रो पड़ी ,,
"सर वो ,, मेरे मोबाइल पर ,,, बार बार ,,,!"
वो इतना ही बोल पाई , प्रताप ने उसे चुप होकर बैठने का इशारा किया !

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"क्यों रो रही हो तुम ? मैने तो कुछ कहा ही नही .. फोन के बारे मे क्या कह रही हो तुम ? क्या कोई फोन कर रहा है बार बार तुम्हें ?"
"जी ,,, वो ,, रवि ,,,, क् कोई नहीं ,, कोई नहीं सर ,,, कोई नहीं ।"
"डरो मत ,, मुझे बताओ ,, अगर कोई परेशान कर रहा है तो ,, तुम मुझे अपना दोस्त समझ सकती हो ,, कौन है ये रवि !"
अब संगीता थोड़ी आश्वस्त हो चुकी थी ,, कई बार पूछने पर उसने बताना शुरू किया ,,
"सर ,,, कभी हम दोनो एक दूसरे को बहुत चाहते थे ,,, मेरे पिताजी तभी चल बसे थे जब मैं बहुत छोटी थी ,, मेरी माँ ने ही मुझे पाल पोसकर बड़ा किया ,, पढ़ाया लिखाया ,,, उन्हें सब बताया था मैने ,, माँ की तबीयत अक्सर खराब रहती थी ,,, वो जल्दी ही हम दोनों की शादी कर देना चाहती थीं ,, रवि और उसके घर वाले भी राजी थे ,, लेकिन फिर रवि ना जाने कहाँ घर छोड़कर भाग गया था ,, बहुत तलाश किया लेकिन कुछ पता नहीं चला ,, माँ चल बसी और मुझे मजबूरन रवि को भूलकर ये नौकरी करनी पड़ी ,, आज पूरे 3 साल बाद वो लौट आया है और मुझे मिलने के लिए फोन कर रहा है ,, क्यों मिलूं मैं ,, क्या फायदा है मिलने का ?"
"वैसे तुम्हें मिलना चाहिए ,, हर काम में फायदा या नुकसान नहीं देखा जाता!"
"लेकिन सर ,,,,!"
"कहाँ है वो ??"
"2बजे उसने मैसेज किया था कि पार्किंग एरिया में इन्तजार कर रहा है वो !"
6 बजने वाले थे और ,, सर्दियों में 6 बजे अच्छा खासा अंधेरा हो जाता है ,,
"वो अब भी वहीं खड़ा होगा ?"
"हाँ! शायद"
"तो चलो ,, तुम एक बार उस से बात तो करो ,, सुनो तो आखिर वो कहना क्या चाहता है !"
"लेकिन ,,,,!"
"चुप रहो ,, और चलो मेरे साथ ,, मैं वहीं छुपकर रहूँगा ,, आसपास ही ,, तुम घबराना नहीं !"
वो कुछ देर चुपचाप बैठी रही ,, और फिर उठकर हाँ में सिर हिलाकर चल दी ,, उसने अपने केबिन से अपना पर्स उठाया और प्रताप के साथ बाहर निकल आई !
पार्किंग एरिया में पहुंचने से पहले ही प्रताप उस से अलग हो गया ,,
संगीता धीरे धीरे उस नवयुवक की ओर बढ़ रही थी जो एकदम आखिर में बढ़िया कपड़े पहने हुए एक काली चमचमाती गाड़ी के पास खड़ा था ,,
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ये 12 आदतें बदल के तो देखिये.. सफलता आपके कदम चूमेगी
प्रताप संगीता से कुछ दूरी बनाकर दूसरी ओर चल रहा था ,,
रवि ,, एक सुन्दर सजीला ,, लम्बा चौड़ा युवक था ,, मंहगा सूट उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था ,, उसने बाहें फैलाकर संगीता का स्वागत किया किन्तु वो उससे कुछ दूर ही रुक गई ,,
"क्यों आए हो ?"
"ये कैसा सवाल है ,, तुम्हें तो ये पूछना चाहिए कि कहाँ गए थे ,, तुम्हारे लिए आया हूँ ,, तुम्हें ले जाने !"
"क्यों गए थे ,, कहाँ गए थे ,, जानते हो कितनी अकेली हो गई थी मैं ,, माँ के जाने के बाद ,,??"
वो फूटकर रो पड़ी ,, बदले में रवि ने आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में समेट लिया ,,
"जानता हूँ मैने गलत किया ,, लेकिन सब तुम्हारे लिए ही तो किया ,, माफ कर दो मुझे ,, मैं तुम्हारे लिए खुशियाँ कमाने गया था ,, देखो ,, कमा लाया !"
ये कहकर उसने अपनी गाड़ी की ओर इशारा किया ,,
"मैने तो ये सब कभी चाहा ही नहीं ,, मैं तो बस तुम्हें चाहती थी ,, तुम ही मेरी खुशी थे !"
रवि को अब अपनी गलती का अहसास हो गया था,,
"आ तो गया हूँ ,, अब तुम भी लौट आओ !"
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इसबार संगीता भी आगे बढ़कर उसकी बाहों में समां गई ,, दोनों एक दूजे को अपनी बाहों में लिए रो रहे थे ,,
और उनसे थोड़ी ही दूरी पर खड़ा प्रताप ,, मन ही मन खुश हो रहा था इस मिलाप को देखकर ,,
काफी देर तक मंत्रमुग्ध सा खड़ा रहा वो ,, और फिर बढ़ गया अपनी गाड़ी की ओर ,, गाड़ी निकाल अपने घर के रास्ते पर आगे बढ़ते -2 उसने पड़ोस वाली सीट पर पड़ा बैग एक हाथ से खोलकर उसमें रखा वो गुलाब बाहर निकाल लिया और मुस्कराते हुए उसे देखकर खिड़की से बाहर फेका और FM चालू किया ,,
"मुस्कराने की वजह तुम हो ,,, गुनगुनाने की वजह तुम हो !"
उसके होठों पर एक लम्बी मुस्कुराहट खेलने लगी .. दो आँसू उसकी आँखों की कोरों से निकले ,, लेकिन प्रताप की मुस्कान इन आँसुओं से कहीं ज्यादा भारी थी
और वो ....
‪आँसू_हल्के_थे‬

Friday, 18 November 2016

ये 12 आदतें बदल के तो देखिये.. सफलता आपके कदम चूमेगी | 12 HABITS CAN CHANGE YOUR LIFE IN HINDI

अगर आप सचमुच अपनी जिन्दगी बदलना चाहते है लगातार तरक्की की सीढियाँ चढ़ना चाहते है एक अच्छे इंसान के रूप में पहचाने जाने की अगर आपकी ख्वाहिश है और अगर आप लोगो के साथ सुखद सम्बन्ध बनाना चाहते हो तो एक बार अपने attitude को अवश्य परख ले ! आत्मवलोकन के माध्यम से सुधार की गुंजाईश पता लगाना बहुत जरुरी होगा आपके लिए!

माना कि अपना Attitude (आदत) बदलना एक मुश्किल काम है लेकिन नामुमकिन नहीं है अगर आप ठान लें तो आसानी से कर सकते हैं नीचे 12 positive thoughts in Hindi  टिप्स दिए गए हैं जो इस काम में आप के साथ एक हो सकते हैं

1.जीने का मकसद ढूंढे (Find the purpose of living) : मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो बिना किसी मकसद के जी रहे हैं |  वे सुबह उठते हैं और काम पर चले जाते हैं शाम को लौटते हैं और फिर सो जाते हैं इससे उनका जीवन ठहरे हुए पानी की तरह हो गया है ! जीवन को सुगंधित और प्रवाहमान बनाए रखने के लिए हमें चाहिए कारण - जीने की वजह । स्पष्ट लक्ष्य होने चाहिए नजरों के सामने- छोटे और बड़े । फिर उन लक्ष्यों को पूरा करने की धुन चाहिए होगी- बोले तो जुनून। 

जीवन और इसके उद्देश्य को साफ-साफ देख सकने वाली दृष्टि होनी चाहिए हमारे पास ! तब कहीं जाकर व्यक्ति पल पल को जीने की स्थिति में आता है तब उसका जीवन स्वयं के लिए ही नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन जाता है ऐसे लोगों के जीवन में एक के बाद एक उपलब्धियां आती चली जाती है।



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2. नये का भय ना पाले : ज्यादातर लोग 'नयेपन' से डरे हुए रहते हैं जबकि हकीकत यह है की अधिकांश बड़े अवसर नयेपन की आड़ में ही छिपे होते हैं नए अनुभव ही हमें विकसित होने का अवसर देते हैं ! 

नई-नई परिस्थितियों का सामना करने से ही हमारे भीतर साहस पैदा होता है हमारा आत्मविश्वास जाता है अतः है जितना हो सके नयेपन को अपनाइए काम करने के नए नए तरीके खोजें, नए नए लोगों से मिलिए, नई-नई जगहों पर घूमने जाइए, नए नए विचारों पर गौर कीजिए, नए-नए शौक पालिये, नई-नई आदतें अपनाइए, नए का सीधा संबंध जोखिम से होता है ! जितना आप नए के संपर्क में आएंगे उतनी ही आपकी जोखिम उठाने की प्रवृति बढ़ जायेगी ! उतना ही आपका दिमाग खुलता जाएगा आपका खुद पर यकीन बढ़ता जाएगा और आप जिंदगी को बिना किसी डर और पछतावे के सकारात्मकता के साथ जी पाएंगे ।

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3. जितने ज्यादा दोस्त, उतना व्यापक नजरिया: जितनी ज्यादा लोगों से हम मिलते हैं उसने ज्यादा अनुभव हमें प्राप्त होते हैं उतने ही अधिक दृष्टिकोण हमें उपलब्ध होते हैं ! जीवन को देखने के लिए इससे हमारा अपना नजरिया व्यापक होता है और संकीर्णता के प्रति आग्रह घट जाता है जब हम अधिक अधिक लोगों के संपर्क में रहते हैं, तो हमें अपने व्यवहार को यथासंभव लचीला बनाना पड़ता है, गलत एटीट्यूट लेकर हम लोगों से नहीं जुड़ सकते ! 

नकारात्मकता सोच वाले व्यक्ति के लिए अधिक मित्र बनाना संभव नहीं होता और ढेर सारे मित्रों वाले व्यक्ति का नकारात्मक बने रहना मुमकिन नहीं है | 

अतः अधिकांश लोगों से मिले और उन्हें मित्र बनाइए जितने ज्यादा लोगों से आपका परिचय होगा उतना ही अधिक स्वीकार्य भाव आप अपने अंदर पाएंगे और यह गुण आपको जीवन की हर आयाम में सफलता दिलाएगा ।

4. सीख जब मिले, जिससे मिले, जितनी मिले ले लो: (learn from everyone)  सीखना आगे बढ़ते रहने का एकमात्र जरिया है जिंदा होने की यही सबसे बड़ी निशानी है, अतः सीखने को तत्पर रहें हर व्यक्ति हर परिस्थिति हर अनुभव को शिक्षक बना ले लेकिन सीखने को बोझ की तरह ना लें उस का भरपूर आनंद उठाएं, कुछ नया जानने में वैसी ही उत्सुकता होनी चाहिए जैसी कि बच्चों में होती है!

पुस्तके सीखने का सबसे सरल और सुलभ साधन है अतः पढ़ने की आदत डालिये, नियमित रुप से पढ़िए ! अगर आपके पास व्यवस्तताएँ अधिक हो तब भी 5-10 पेज रोजाना पढ़ना कोई मुश्किल काम नहीं होगा, इस तरह से आप साल भर में 10 से 15 पुस्तकें तो आसानी से पढ़ ही डालेंगे और 5 साल अगर आपने यही नियम बनाए रखा तो सोच कर देखिए कि आपके ज्ञान और समझ बूझ में कितनी वृद्धि हो चुकी होगी ! 

लेकिन पढ़ने के नाम पर कुछ भी पढ़ने की आदत से बचना जरूरी है सकारात्मक सोच पैदा करने वाली जीवन को व्यवस्थित तरीके से जीना सिखाने वाली प्रोफेशनल तौर-तरीके सिखाने वाली वैज्ञानिक सोच पैदा करने वाली तथा सफल लोगों के अनुभव साझा करने वाली पुस्तकें आपकी सच्ची शिक्षक साबित हो सकती है !


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5. दिन की शुरुआत 'योजना' से कीजिये : (Start the day with a new plan) अपने दिनभर के क्रियाकलापों पर आपका पूरा नियंत्रण होना चाहिए ! अगर आप दिन भर में हर काम प्लानिंग से करते हैं, तो निसंदेह आपकी उत्पादकता बढ़ जाएगी आपके लक्ष्य समय पर पूरे होंगे इससे अंततः आपकी सकारात्मक में वृद्धि होगी ! 

अतः दिन की शुरुआत दिन की योजना बनाने से करें, दिन भर में जो कुछ भी काम करना है उसके लिए समय सीमा निर्धारित कर ले और कुछ समय 'आकस्मिक' कार्यों के लिए अवश्य निकाल कर रखें !


HEART TOUCHING LOVe StoRie


6. जिम्मेदारियों को अवसर माने : जब भी आपको कोई जिम्मेदारी सौंपी जाये तो खुश हो जाए की आपको किसी योग्य समझा गया है, की बहुत सारे लोग आप पर भरोसा करते हैं इसलिए घर-दफ्तर कॉलेज या सामाजिक संस्थाओं में रहते या कार्य करते हुए आपको अधिक अधिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए, जितनी ज्यादा जिम्मेदारियां आप लेंगे उतनी ही उनको पूरी करने की आपकी क्षमता बढ़ती जाएगी ! 

आपके भीतर नेतृत्व के गुणों का विकास होगा और सकारात्मकता बढ़ेगी ।

7. लोगो के 'योगदान' पर गौर करे : एक बार एक motivational speaker ने कंपनी के सीनियर एग्जीक्यूटिव के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया था उसमें एक सत्र संबंधों पर भी था उसी सत्र के दौरान motivational speaker एक प्रतिभागी से पूछा हां तो आप मुझे यह बताइए कि आज सुबह से आप कितने लोगों पर आश्रित रहे हैं मेरे कहने का मतलब है कि किन-किन लोगों ने सुबह से अब तक विभिन्न कार्यों में आपकी मदद की है, 

तो वह सोच में पड़ गया कुछ देर सोचने के बाद उसने जो जवाब दिया, उससे सबसे ज्यादा हैरान वह खुद था उसने बताया कि सुबह से लेकर दोपहर तक बहुत सारे लोगों ने बहुत सारे तरीकों से उसकी मदद की थी !


अगर ये धर्म आड़े नही आता न तो तुम मेरी होती...


मसलन उसकी पत्नी, उसका बेटा, उसकी मां, उसकी बेटी, उसका दूधवाला, उसका अखबारवाला, उसका नौकर, उसका ड्राइवर, उसके दफ्तर का चपरासी,  उसके सहकर्मी इत्यादि इत्यादि उसने कहा सबसे पहले तो मैं सुबह समय पर उठने के लिए अपनी पत्नी पर आश्रित रहा ! फिर मेरी बेटी ने मेरे लिए चाय बनाई, मेरी मां ने मुझे अखबार ला कर दिया ! 
लॉन्ड्री वालों ने मेरे कपड़े धोकर प्रेस किए पुनः में आश्रित रहा, अपनी पत्नी पर जिसने हर रोज की तरह आज भी मेरी तमाम जरूरी चीजों को निकालकर मेरे सामने रखा ! ताकि मुझे दफ्तर के लिए निकलने में देरी न हो फिर मेरे ड्राइवर ने मुझे ठीक समय पर ऑफिस छोड़ा चोकीदार ने मेरे लिए गेट खोला !!

लिफ्टमैंन ऊपर आने में मेरी मदद की ! और हां मेरी कंपनी ऑफिशियल जिन्होंने मेरे जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से इस सेमिनार का योजन किया ! 

अंत में मेरे वर्तमान सहकर्मी जो हर कदम पर मेरा साथ दे रहे हैं मैं इन सभी पर आश्रित हूं, इनकी मदद के बिना मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगा, शायद ऐसा ही होता है हम अक्सर उन लोगों को धन्यवाद देना भूल जाते हैं, जो हमारे जीवन को आसान बना रहे होते हैं हमारे पास वक्त ही नहीं होता !

उन लोगों की योगदान को देखने का जो हमारे बेहद करीब हैं अगर आप भी ऐसा कर रहे हैं तो अभी जाग जाइये !

Tuesday, 15 November 2016

अगर ये धर्म आड़े नही आता न तो तुम मेरी होती... सपना !


Hindi Love Story: अगर ये धर्म आड़े नही आता न तो तुम मेरी होती... सपना !

धर्म जिसका मकसद लोगों को ईश्वर के बताये रास्ते पर चलना है। लेकिन यही धर्म तब समस्या उत्पन्न करने लगता है जब दो दिल अलग अलग धर्मो के हो।
ऐसी ही कहानी है राजस्थान के पुष्कर में जन्मे फैज़ और सपना का। फैज़ मुस्लिम और सपना हिन्दू। दोनों में ज़मीन आसमां का फर्क था। फैज़ सामान्य परिवार से था जबकि सपना का सामाजिक रूप से सुदृढ़ और खुशहाल था। फैज़ और सपना दोनों एक ही विषय में अपनी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके थे। फैज़ सपना से दो साल आगे था। फैज़ को इस बात का कभी इल्म नहीं था कि कोई नज़र कॉलेज में उसका पीछा करती थी और उसे देख कर वो नज़र खुश हो जाया करती थी। लेकिन कॉलेज जीवन में फैज़ और सपना में कभी बात नहीं हुई। फैज़ ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा आएगा जब उसे उन नज़रों का सामना करना होगा जो उसके लिए बेताब हुआ करती थी। फैज़ की पढ़ाई पूरी हो गई और उसने कॉलेज छोड़ दिया जबकि सपना उसी कॉलेज में पढ़ाई पूरी कर रही थी। सपना को फिर फैज़ कहीं नहीं दिखा कॉलेज में दुबारा।
6 साल बीत चुके थे। फैज़ छोटे मोटे काम करके अपना पेट पालने का तरीका सीख रहा था। परिवार में और भी कमाने वाले सदस्य भी थे उसके जिसकी वजह से फैज़ पर परिवार का बोझ कम था।


एक दिन फैज़ अजमेर जा रहा था हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पे उर्स के दौरान। रास्ते में वो एक दुकान के पास पानी पीने के लिए रुकता है। तभी पीछे से एक मधुर सी आवाज़ आई "भैया एक पानी की बोतल देना".... फैज़ की निगाह अचानक पीछे की ओर देखने लगी और फैज़ को अपनी आँखों पे विश्वास नहीं हुआ कि ये वही सपना थी जो कभी उसके साथ कॉलेज में पढ़ा करती थी। लेकिन फैज़ सपना की भावनाओं से अवगत नहीं था।
"सपना तुम यहाँ अजमेर में कैसे?"
"क्यों मैं यहाँ नहीं हो सकती क्या?"
"मेरे कहने का मतलब ये है कि आज 6 साल बाद दिखी तुम। "
"हाँ, कितना वक्त बीत गया न"
फिर दोनों उसी दुकान के बाहर कुछ देर अपने अतीत में खो गए। कभी कॉलेज की सुनहरी यादों का ज़िक्र तो कभी शिक्षकों की बातें तो कभी भविष्य के बारे में चर्चा। फैज़ ने सपना से उसका फोन नम्बर ले लिया। और फिर कुछ पलों में दोनों एक दूसरे की नज़रों से ओझल हो गए।
अजमेर में ख्वाजा के दरबार में काफी भीड़ थी। किस्मत वालों को ही ख्वाजा अपने बारगाह में बुलाते हैं। फैज़ की किस्मत अच्छी थी कि वो ख्वाजा के दरबार में अपनी हाज़िरी लगाने आया था।
अजमेर से लौटने के बाद फैज़ अपने अंदर ऊर्जा का संचार महसूस कर रहा था। घर लौट कर उसने सपना को पहली बार फोन किया और धीरे धीरे बातें करने का सिलसिला चालु हो गया। कभी सपना का फोन आये तो कभी सन्देश। कुछ ही दिनों में फैज़ को सपना से अटूट लगाव हो गया। फैज़ समझ नहीं पा रहा था कि उसे हो क्या गया है। कुछ दिन बाद दोनों की मुलाकात कॉलेज में पूर्ववर्ती छात्रों के सम्मेलन के आयोजन के दौरान हुई।
कॉलेज के फंक्शन में सपना से मिलने के बाद फैज़ का मन कहीं नहीं लगने लगा। वो जान गया था कि उसे सपना से प्रेम हो गया है। सपना के दिल में तो अब भी फैज़ के लिए मोहब्बत के एहसास क़ैद थे मगर सपना उस एहसास को अपने दिल के कैदखाने से आज़ाद नहीं कर पा रही थी। न वो तब जुबां से इकरार कर सकी थी न अब इज़हार कर पा रही थी। एक दिन फैज़ से रहा नहीं गया उसने सपना से अपने प्यार का इज़हार कर दिया।
"सपना मैं कुछ कहना चाहता हूँ"
"कहो न"
"समझ नहीं आता कैसे कहूँ। मुझे तुमसे प्यार हो गया है। हर वक्त तुम ही तुम मेरे ख्यालों में छाई हो।"


सपना को भी प्यार था फैज़ से पर वो इस बात से नज़रें चुरा जाती थी मगर फैज़ के इज़हार से मुतास्सिर होकर सपना ने भी अपने दिल की बात को जुबां पे लाना बेहतर समझा। उसने 6 साल से अपने अंदर पल रहे जज़्बात को फैज़ के सामने पेश कर दिया:
"फैज़ मैं कॉलेज के दिनों से ही तुम्हे चाहती थी।"
"तो फिर कभी कहा क्यों नहीं"
"कैसे कहती? लड़की हूँ न। तुमने कभी महसूस नहीं किया?"
"मैं कैसे महसूस करता? मैं तो बस तुम्हे देखता था कि तुम अपने ही ख्यालों को दुनिया में खोई रहती हो अपनी सहेलियों के साथ। ऐसे भी तुम मुझसे दो साल जूनियर थी। लोग क्या कहते?"
"लोग तो कहते ही रहते हैं। लोग नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा?"
"आई लव यू"
"आई लव यू टू"
दोनों के लब आपस में टकरा गए और कहीं दूर सागर में जलधाराएं हिलोर मारने लगी। पंछी आसमान में कलरव करने लगे। बागों में फूलों की खुशबू फ़िज़ा को मनमोहक बनाने लगी।
फैज़ इस बात को जानता था कि वो मुस्लिम है और सपना हिन्दू। ऐसे रिश्तों को समाज कभी कबूल नहीं करेगा और न सपना के परिवार वाले। मगर ये प्यार का शोला था जो भड़क उठा था। न इसपे फैज़ का नियंत्रण था न सपना खुद पे काबू कर पा रही थी।

फिर एक दिन फोन पर:
"सपना तुम मेरी हो न"

"हाँ फैज़ तुम्हारी ही हूँ। लेकिन तुम जानते हो न हम कभी एक नहीं हो पाएंगे।"
"क्यों नहीं?"
"मैं अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकती। ये समाज मेरे परिवार को ताने मार मार का जीना दूभर कर देगा"
"किस समाज की बात कर रही हो?"
"उसी समाज की जिसमे हम तुम रहते हैं।"
फैज़ का मन करता था कि वो सपना को सबसे दूर भगा कर ले जाये और उसे अपना बना ले लेकिन फैज़ के संस्कार उसे कोई भी गलत कदम उठाने से रोक देते थे।
दूसरी तरफ सपना के दिल में फैज़ के लिए इतना प्यार था जिसे शब्दों में ब्यान कर पाना कठिन है। सपना भी चाहती थी कि फैज़ उसका हो जाये मगर परिवार का प्यार उसके प्यार पर भारी हो जाता था। और हो भी क्यों न। जिस परिवार में बच्चे पल कर बड़े होते हैं और संस्कार प्राप्त करते हैं वो क्यों अपने परिवार को ठोकर मारे। लेकिन सपना एक ऐसे दोराहे पर खड़ी थी जो कांटो भरा था। फैज़ को चुनती तो परिवार छूट जाये। और परिवार को चुनती तो फैज़।
आगे चल कर अगर दोनों बिछड़ जाएँ तो दोष किसका है? इनके अलग अलग धर्म का या इनके प्यार का? या उस समाज को दोष दें जिसने नियम कानून बनाये हैं? या हम अपनी सोच को दोष दें? चाहे जो भी दोषी हो मगर प्यार का मीठा अहसास फैज़ और सपना के दिल में सदैव बना रहेगा। साथ बिताये लम्हों की कसक तो हमेशा ही साथ होगी फैज़ और सपना के।
कहानी अभी खत्म नहीं हुई। हम आधुनिक युग 2016 में जी रहे हैं फिर भी हमारे समाज की सोच आज भी बेड़ियों में जकड़ी हुई है। आज भी समाज दो प्यार करने वालों को एक नहीं होने देता। और अगर प्यार करने वाले अलग धर्मों के हो तो कहना ही क्या। आज भी हमारे समाज में प्यार से ज़्यादा जाति-धर्म और गोत्र को ही महत्व दिया जाता है। राजनेताओं के लिए बस धर्म का इस्तेमाल वोट पाने के लिए किया जाता है। हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई आपस में हैं भाई भाई केवल एक नारा मात्र है और कुछ नहीं। भले ही कुछ लोग ये कहें कि सभी धर्मों का सार एक ही है। लेकिन समाज के इस सच का आइना कुछ और ही है जहाँ फैज़ और सपना जैसे कई अनगिनत इश्क के शैदाई आज भी अपने हाल पर आंसू बहा रहे हैं...........
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